वारिद बन बैठा मै

जब कभी कातिक में मीनाक्षी सा मुर्झता हूँ ,
तितलियों के कोलाहल की आस लगता हूँ ।

बिखरी बिखरी धूप छाँव में ,
मैं वारिद सा बन ठन पूर्णिमा की आस लगता हूँ !

..अतुल

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