#4 ना जाने कहाँ खोया रहता हूँ

#FromMyDairyPages

 ना जाने कहाँ खोया रहता हूँ

 

ना जाने कहाँ खोया रहता हूँ

कल्पनाओं में सोया रहता हूँ

 

छिपतीं धूप में 

असमां के साये में 

बहतीं नज़र के 

टूटें किनारों पर

अपनी चाह के

छोटे क़दमों से 

चल कर..

अद्रीक विहंगम पल पाता हूँ

 

ना जाने कहाँ खोया रहता हूँ
ना जाने कहाँ खोया रहता हूँ

ख़ामोशी की चादर ओंधे 

क्रतिम भीड़ में सोया रहता हूँ ….।

 

और परमाणु के कणकण में

मैं अपने काव्यरंग भरता हूँ 

 

कहता हूँ …

 

अलंघ्य ह्रदय तरंग तरंग से

मैं ख़ुद में सिमटा सागर हूँ…

मैं ख़ुद में किनारा हूँ ..

 

ना जाने कहाँ खोया रहता हूँ

ना जाने कहाँ खोया रहता हूँ…..
– अतुल शुक्ला

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